इस बरस भी देवता घर उदास
तुलसी गई सूख,
जोरने वाला नहीं कोई दीया,
मेरे घर के देवता घर में लगा है ताला।
इस बरस किसी ने नहीं बनाया घरौंदा,
तुलसी गई सूख,
जोरने वाला नहीं कोई दीया,
मेरे घर के देवता घर में लगा है ताला।
इस बरस किसी ने नहीं बनाया घरौंदा,
चुक्के में लाई खील बतासेनहीं भरे,
खाली है घर,
घर का छत सूना,
कभी छोड़ा करते थे पटाखे,
शोर पर नाराज होते थे पिता,
अब खामोश हैं पिता दूसरे शहर में।
इस बरस घर उदास है और मन सूना,
पर क्या करें,
रेल गाडि़यां तो बढ़ीं बेतहाशा मेरे भी शहर के लिए,
पर अपने शहर से दूर नहीं रह पाने की छटपटाहट है,
अच्छे हैं वे दोस्त वे संगी साथी जो हैं अपने ही शहर में,
इस बरस भी घर सूना है
देवता घर उदास।
खाली है घर,
घर का छत सूना,
कभी छोड़ा करते थे पटाखे,
शोर पर नाराज होते थे पिता,
अब खामोश हैं पिता दूसरे शहर में।
इस बरस घर उदास है और मन सूना,
पर क्या करें,
रेल गाडि़यां तो बढ़ीं बेतहाशा मेरे भी शहर के लिए,
पर अपने शहर से दूर नहीं रह पाने की छटपटाहट है,
अच्छे हैं वे दोस्त वे संगी साथी जो हैं अपने ही शहर में,
इस बरस भी घर सूना है
देवता घर उदास।