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Wednesday, April 6, 2011
भाषाः घर वाली, बाहर वाली, गाली और बच्चे
-कौशलेंद्र भाषा अपने आसपास के परिवेश से ज्यादा सीखते हैं। साथ ही साथ भाषायी तमीज़ और बरतने की तालीम भी हमें भाषा इस्तेमाल करने वालों से ही उस भाषा के संस्कार भी मिलते हंै। हमारा एक भाषा के साथ जन्म से लेकर मृत्यु पूर्व तक का साथ तो होती ही है। लेकिन हम उस भाषा संगिनी के प्रति बहुत कम ही सजग और संवेदनशील होते हैं। इसी का परिणाम होता है कि हमारे पास दो तरह की भाषा संगिनी होती हंै, एक घर वाली और दूसरी बाहर वाली। जब भाषायी बहुरिया का मुखड़ा दिखाना होता है तो बाहर वाली का इस्तेमाल करते हैं। घर वाली को छुपा कर रखते हैं, ताकि उसकी देशजपन पर लोग ख़ास ठप्पा न लगा दें। यानी इस तरह से हम दो भाषाओं, बल्कि दो से भी अधिक भाषाओं को साथ लेकर चलते हैं। जब जैसी जरूरत पड़ी उस बहुरिया को आगे कर वाहवाही बटोर ली। ज़रा सोचें क्या यह भाषा के साथ न्याय है? बहरहाल भाषा के कई रंग-रूप हमें अपने आस-पास में देखते-सुनते रहते हैं। उनमें जो सबसे भदेस माना जा सकता है वह है गाली। गौरतलब है कि गाली देने की आदत से बड़े तो बड़े बच्चे भी लाचार हैं। बड़ों की बातचीत पर ध्यान दें तो पाएंगे कि शायद ही कोई पक्ति बिना गाली की पूरी होती है। ‘स्याला’ गोया अब यह शब्द गाली की श्रेणी से बाहर निकल शिष्ट भाषाओं में शामिल हो गया है। मां-बहन से संबंधित गालियों के साथ विपरीत लिंग का इस्तेमाल बहुतायत रूप में सुने जा सकते हैं। कुछ लोगों की जबान पर गाली स्वागत सूचक शब्दों के मानिंद होते हैं। किसी को प्यार से भी बोलेंगे तो उसके साथ ख़ास गाली के विशेष्ण लगाना नहीं भूलते। कई घरों में पिता अपने बेटे, पत्नी बेटी तक के सामने फर्राटेदार बिना किसी ग्लानि भाव के गाली देते भी मिल जाएंगे। ऐसे माहौल में यदि बच्चे गाली देने लगें तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। लेकिन जब हम ऐसे बच्चों की बात करते हैं जिनका जन्म, बचपन और किशोरावस्था सड़कों, पर्कों, फ्लाईओवर के नीचे जीवन बसर करते हैं ऐसे में उनकी भाषा कौन गढ़ता है? ऐसे बच्चे कहां और किनसे भाषा सीखते हैं इसे जानना भी रोचक है। गौरतलब है कि मां-बाप का दिमाग तब ठनकता है जब उन्हीं का बेटा उनके सामने उन्हीं गालियों की पुनरावृत्ति करता है। कोई भी बच्चा सबसे पहले गाली व अच्छी आदतों की तालीम अपने घर-परिवार के माहौल में पाता है। उसके बाद आता है उसका परिवेश, जहां एक बच्चा ज्यादा से ज्यादा खुले में समय बिताता है। यहां कोई सुधारने, टोकने वाला नहीं होता, बल्कि यदि कोई गाली व अन्य ग़लत काम करता है तो ज्यादातर उसे दोस्तों का सहयोग ही मिलता है। गाली व अन्य शिष्ट एवं अशिष्ट की श्रेणी में आने वाली आदतों पर नजर डालें तो पाएंगे कि बच्चों के व्यवहार के पीछे उनका सामाजिकरण गहरा सरोकार रखता है। सड़कों पर सोने व कूड़ा बिनने वाले बच्चों के साथ काम करते हुए इधर कुछ दिनों से नोटिस कर रहा था कि बच्चों की ओर से गाली देने की शिकायत ज्यादा ही आने लगी थी। सो इस मुद्दे को सलटाने की योजना बनाई। बच्चों से बात की कि कौन से बच्चे हैं जो दिन में ज्यादा बार गाली देते हैं। शुरू में तो किसी ने भी स्वीकार नहीं किया। लेकिन कुछ देर बात करने के बाद काफी हाथ हां में खड़े हो गए। इसी दौरान विनिता और सत्ते के बीच की लड़ाई और उनके बीच हुई गालियों के बौछार की खबर भी आई। विनिता पर दबाव बनाया कि वो वही गाली दुहराए जो उसने सत्ते को दिया था। काफी देर के बाद उसने जो गाली दी उसे सुन कर कान खड़े हो गए। मां -बहन और शुद्ध पुरुषों वाली गाली उसने दी थी। गाली देते वक्त उसके माथे पर ज़रा भी सिकन नहीं थी। गाली देने और न देने के बीच के संबंध को खोलने की कोशिश की। सवाल किया क्या यही गाली अपनी मम्मी के सामने दे सकती हो? तो उसने नकार दिया। फिर अगला सवाल था कि तो फिर वैसी गाली दोस्त को कैसे दे सकती हो? गाली देने -सुनने के बीच के रिश्ते और भाव जगत में होने वाली प्रतिक्रियाओं के बारे में भी उनसे चर्चा की। तब विनिता को शर्म महसूस हुई और उसने कहा अब मैं गाली नहीं दूंगी। लेकिन सज़ा के तौर पर हमने सभी के मत लेने के बाद तय किया कि आज इन दोनों से छुट्टी होने तक कोई बात नहीं करेगा। दूसरे दिन पता चला विनिता स्कूल आते ही मुझसे माफी मांगने लगी। सर गलती हो गई। बाद में अन्य बच्चों ने बताया, कल इसकी मां ने इसे गाली देने पर घर पर मारा है। अगले दिन माॅर्निंग असेंब्ली में तय किया कि गाली को लेकर एक चर्चा की जाए। सो कल की घटना को संदर्भ बनाते हुए बात शुरू की। और सब की सहमति से तय किया गया कि सुबह स्कूल आने से लेकर शाम घर जाने तक के समय में कोशिश करो कि गाली न दो। और अगर आदतन गाली निकल जाती है तो मुझे या किसी भी दूसरे टीचर से आकर स्वीकार कर लो कि मुझसे गलती हो गई। मैंने गाली दी। उसे मांफ कर दिया जाएगा। जो सबसे कम गाली देगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा। अंत में हाथ आगे करा कर शपथ दिलाई कि मैं आज से कोशिश करुंगी/ करुंगा कि गाली न दूं। और यदि मुंह से निकल जाती है तो आप आकर स्वीकार करेंगे। इस परिचर्चा का परिणाम दोपहर होते होते आने लगे। बच्चे खुद आकर स्वीकारने लगे कि सर मुझसे गलती हो गई। मैंने गाली दी। पच्चीस बच्चों में से तकरीबन पांच बच्चे गाली देने वाले मिले। बाकी पर इसका अच्छा असर देखने को मिला। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की योजना है।
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
1 comment:
बहुत ही अच्छा लेख
छोटे बच्चे जब गाली देते तो माँ बाप खुश होते है
बड़े होके जब उनको ही सुनते है ,तब उनकी समझ में आ जाता है गलती कहं पर है
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