हाल ही में कुलपति विभूति नारायण राय ने महिला लेखिका समूह को अपशब्द कहा। लेकिन उस कहे पर उनको कोई अफ़सोस नहीं था। लेकिन मामला गरम होता देख ज़नाब ने आखिर माफीनामा ज़ारी किया। लेकिन जिन शब्दों को इस्तमाल किया उस से ज़रा भी नहीं लगता कि उनने कोई गलती की। बतायुब राय , यदि कुछ महिला को भावना ठेस पुचा हो तो माफ़ी मांगता हूँ। इस माफ़ी में भी अरोगेंच्य नज़र आता है।
दो माह पहले इक कथाकार संपादक ने धर्म ग्रंथो को मल मूत्र तक कह डाला। लेकिन मामला टूल नहीं पकड़ा सो माफ़ी का सवाल नहीं उठा। लेकिन सोचने को विवास करता है कि इन बयानों के पीछे किसे तरह की मानसिकता होती है? साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि यह भी इक नाम छपने और विवाद में बने रहने का स्टंट है। वर्ना इन लोगों में पाक रही साधन्त कभी कभी बाहर आ जाते हैं।
नेता और पार्टी के बीच तो इस तरह की बयान बाजी तो होती रहती है लेकिन प्रचार खत्म होते ही गले मिलने की चलन भी खूब है। वाह क्या ही बयान बाजों के बीच भाईचारा है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Wednesday, August 4, 2010
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin, chalo dhundh layen, gum ho gaya jo bhid me. chand hasi ki gung, kho gai, kho gai vo khil khilati saf...
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