जब नही बाँधता कोई भी शब्द, या रिश्ते तो यही कह सकते हैं की अब वो बात नही रही जॉब कभी आपस में हुवा करती थी। इसे यूँ भी समझ सकते है, हमारी हर बात या हर रिश्ते उसी ट्रैक पर नही चलते जिसपर हम सोचा करते हैं। बात बिल्कुल दुरुस्त है चले भी क्यों हर कोई अपनी तरह जीना चाहता है आप या की हम उसे अपनी तरह चलने को नही विवश कर सकते।
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