Wednesday, March 20, 2019

रोज़ की ज़िंदगी से कट जाना



कौशलेंद्र प्रपन्न
कुछ लोग ऐसे जाते हैं जैसे जाती है धूप। जैसे जाती है हवा और जाती है यादें। धीरे धीरे सब कुछ धीमी होती जाती है। हमें मालूम भी नहीं पड़ता कि कौन कब चला गया। कहां चला गया आदि। लेकिन जो जाता है अपने पीछे कुछ तो ज़रूर छोड़ जाता है। कुछ अच्छी। कुछ मधुर। कुछ खट्टी यादें। जिन्हें हम जाने के बाद या तो बिसुरा देते हैं या फिर संजोकर रख लिया करते हैं। जब हमारी रोज़ की जिं़दगी से कोई कट जाता है तो वह हमारी चिंताओं, संवेदनाओं आदि से भी कटता चला जाता है। ऐसा अकसर होता है कि जिसे हम रोज़ देखा और मिला करते हैं उससे हम वास्तव में जुड़े होते हैं। उसकी तमाम चीजें हमें खुशी और दुख दोनों ही दिया करती हैं।
जो हमारी जिं़दगी में शामिल होते हैं हम उनकी चिंता भी किया करते हैं। उस व्यक्ति की हर वो छोटी चीज हमें परेशान भी किया करती हैं। कई बार यह प्रक्रिया ऐसी धीमी गति से होती है कि हमें उसकी तीव्रता और रफ्तार महसूस नहीं हो पाती और जाने वाला व्यक्ति यूं ही हमारी जिं़दगी से दूर चला जाता है।
हम जाने अनजाने न जानें ऐसे कितने ही व्यक्ति हमारी ज़िंदगी से साइन आउट हो जाते हैं। इनका कोई बैकअप नहीं रह जाता। कभी कभी बस यादों में आवाजाही किया करते हैं बस। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अचानक से ग़ायब हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे लोग तुरंत हमारी जिं़दगी से दूर हो जाते हैं। ऐसे वो लोग हुआ करते हैं जिन्हें शायद हम देखना, सुनने और मिलना तक नहीं चाहते।

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